Friday, 7 October 2016

Nine Glorious Forms of Goddess Durga

Navratri

Navratri, the festival of nights, lasts for 9 days with three days each devoted to worship of Ma Durga, the Goddess of Valor, Ma Lakshmi, the Goddess of Wealth and Ma Saraswati, the Goddess of Knowledge. During the nine days of Navratari, feasting and fasting take precedence over all normal daily activities amongst the Hindus. Evenings give rise to the religious dances in order to worhip Goddess Durga Maa.

2016 Dates & time for Durga Puja Celebrations Kolkata & Delhi
Durga puja dates are correct; it is based on GMT – Greenwich Mean Time. You have to know how to read Madan gupta panjika & how to convert the world time.



Durga Puja Days
Navratri Day 1 1-Oct-16 Saturday Pratipada Ghatsthapana
Navratri Day 2 2-Oct-16 Sunday Pratipada Chandra Darshan
Navratri Day 3 3-Oct-16 Monday Dwitiya Brahmacharini Puja
Navratri Day 4 4-Oct-16 Tuesday Tritiya Chandraghanta Puja
Navratri Day 5 5-Oct-16 Wednesday Chaturthi Kushmanda Puja
Navratri Day 6 6-Oct-16 Thursday Panchami Skandamata Puja
Navratri Day 7 7-Oct-16 Friday Shashthi Katyayani Puja
Navratri Day 8 8-Oct-16 Saturday Saptami Kalaratri Puja
Navratri Day 9 9-Oct-16 Sunday Ashtami Durga Ashtami
Navratri Day 10 10-Oct-16 Monday Navami Mahanavami
Navratri Day 11 11-Oct-16 Tuesday Dashami Durga Visarjan, Vijayadashami


1st - 3rd day of Navratri
On the first day of the Navaratras, a small bed of mud is prepared in the puja room of the house and barley seeds are sown on it. On the tenth day, the shoots are about 3 - 5 inches in length. After the puja, these seedlings are pulled out and given to devotees as a blessing from god. These initial days are dedicated to Durga Maa, the Goddess of power and energy. Her various manifestations, Kumari, Parvati and Kali are all worshipped during these days. They represent the three different classes of womanhood that include the child, the young girl and the mature woman.

4th - 6th day of Navratri
During these days, Lakshmi Maa, the Goddess of peace and prosperity is worshipped. On the fifth day which is known as Lalita Panchami, it is traditional, to gather and display all literature available in the house, light a lamp or 'diya' to invoke Saraswati Maa, the Goddess of knowledge and art.

7th - 8th day of Navratri
These final days belong to Saraswati Maa who is worshipped to acquire the spiritual knowledge. This in turn will free us from all earthly bondage. But on the 8th day of this colourful festival, yagna (holy fire) is performed. Ghee (clarified butter), kheer (rice pudding) and sesame seeds form the holy offering to Goddess Durga Maa.

Mahanavami
The festival of Navratri culminates in Mahanavami. On this day Kanya Puja is performed. Nine young girls representing the nine forms of Goddess Durga are worshiped. Their feet are washed as a mark of respect for the Goddess and then they are offered new clothes as gifts by the worshiper. This ritual is performed in most parts of the country.


नौ रूपों में मां दुर्गा की महिमा

रामानुज सिंह
हिंदुओं का महापर्व ‘ नवरात्र ’ हर साल की तरह इस साल भी हर्षोल्लास और पूरे भक्ति भाव से मनाया जा रहा है। नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। नवरात्र का अर्थ नौ रातें होता है। इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।
नवरात्र में देवी की साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है। देवी दुर्गा की स्तुति , कलश स्थापना, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध- नौ दिनों तक चलने वाला आस्था और विश्वास का अद्भुत त्यौहार है। नवरात्री का पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र माह में, तो दूसरा आश्विन माह में। आश्विन महीने की नवरात्र में रामलीला, रामायण, भागवत पाठ, अखंड कीर्तन जैसे सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान होते है। यही वजह है कि नवरात्र के दौरान हर कोई एक नए उत्साह और उमंग से भरा दिखाई पड़ता है। देवी दुर्गा की पवित्र भक्ति से भक्तों को सही राह पर चलने की प्रेरणा मिलती है। इन नौ दिनों में मानव कल्याण में रत रहकर, देवी के नौ रुपों की पूजा की जाय तो देवी का आशीर्वाद मिलता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है


शैलपुत्री
नवरात्र के पहले दिन मां के रूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ' शैलपुत्री ' पड़ा। माता शैलपुत्री का स्वरुप अति दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और मां के बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। मां शैलपुत्री बैल पर सवारी करती हैं। मां को समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है। इनकी आराधना से आपदाओं से मुक्ति मिलती है। इसीलिए दुर्गम स्थानों पर बस्तियां बनाने से पहले मां शैलपुत्री की स्थापना की जाती है माना जाता है कि इनकी स्थापना से वह स्थान सुरक्षित हो जाता है। मां की प्रतिमा स्थापित होने के बाद उस स्थान पर आपदा, रोग, ब्याधि, संक्रमण का खतरा नहीं होता और जीव निश्चिंत होकर अपना जीवन व्यतीत करता है।

ब्रह्मचारिणी
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से भक्तों का जीवन सफल हो जाता है।   मां भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप है माता ब्रह्मचारिणी, ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या, यानी तप का आचरण करने वाली भगवती,   जिस कारण उन्हें मां ब्रह्मचारिणी कहा गया। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। मां के दाहिने हाथ में जप की माला है और मां के बायें हाथ में कमण्डल है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है। ऐसा भक्त इसलिए करते हैं ताकि उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने का मंत्र बहुत ही आसान है। मां जगदम्बे की भक्तों को मां ब्रह्मचारिणी को खुश करने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

चंद्रघंटा
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को भौतिक , आत्मिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है। मां की उपासना से घर-परिवार से नकारात्मक ऊर्जा यानी कलह और अशांति दूर होती है। मां चंद्रघंटा का स्वरुप अति भव्य है। मां सिंह यानी शेर पर प्रसन्न मुद्रा में विराजमान होती हैं। दिव्य रुपधारी माता चंद्रघंटा की दस भुजाएं हैं। मां के इन दस हाथों में ढाल, तलवार, खड्ग, त्रिशूल, धनुष, चक्र, पाश, गदा और बाणों से भरा तरकश है। मां चन्द्रघण्टा का मुखमण्डल शांत, सात्विक, सौम्य किंतु सूर्य के समान तेज वाला है। इनके   मस्तक पर घण्टे के आकार का आधा चन्द्रमा सुशोभित है। मां की घंटे की तरह प्रचण्ड ध्वनि से असुर सदैव भयभीत रहते हैं। मां चंद्रघंटा का स्मरण करते हुए साधकजन अपना मन मणिपुर चक्र में स्थित करते हैं। मां चंद्रघंटा नाद की देवी हैं। इनकी कृपा से साधक स्वर विज्ञान में प्रवीण होता है। मां चंद्रघंटा की जिस पर कृपा होती है उसका स्वर इतना मधुर होता है कि हर कोई उसकी तरफ खिंचा चला आता है। मां की कृपा से साधक को आलौकिक दिव्य दर्शन एवं दृष्टि प्राप्त होती है। साधक के समस्त पाप-बंधन छूट जाते हैं। प्रेत बाधा जैसी समस्याओं से भी मां साधक की रक्षा करती हैं। योग साधना की सफलता के लिए भी माता चन्द्रघंटा की उपासना बहुत ही असरदार होती है।

कुष्मांडा
नवरात्र के चौथे दिन मां पारांबरा भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अपनी मंद-मंद मुस्कान भर से ब्रम्हांड की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए ये सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। देवी कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वह ां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान ही अलौकिक हैं। माता के  तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित होती हैं ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में मौजूद तेज मां कुष्मांडा की छाया है। मां की आठ भुजाएं हैं। इसलिए मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। मां सिंह के वाहन पर सवार रहती हैं। मां कुष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। आज के दिन साधक का मन ' अदाहत ' चक्र में अवस्थित होता है। इस दिन साधक को बहुत ही पवित्र और अचंचल मन से कुष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। इनकी उपासना से सभी प्रकार के रोग-दोष दूर होते हैं। धन यश और सम्मान की वृद्धि होती है। मां कूष्माण्डा थोड़ी सी पूजा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे मन से माता की पूजा करे तो मन की सारी मुरादें पूरी होती हैं।

स्कंदमाता
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। आदिशक्ति का ये ममतामयी रूप है। गोद में स्कन्द यानी कार्तिकेय स्वामी को लेकर विराजित माता का यह स्वरुप जीवन में प्रेम, स्नेह, संवेदना को बनाए रखने की प्रेरणा देता है। भगवान स्कंद ' कुमार कार्तिकेय ' नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में स्कंद को कुमार और शक्ति  कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने  के कारण मां दुर्गा के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि स्कंदमाता की पूजा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं। इस दिन साधक का मन ' विशुद्ध ' चक्र में अवस्थित होता है। मां स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं साधक को शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना अपने आप हो जाती है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण स्कंदमाता की पूजा करने वाला व्यक्ति अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है।

कात्यायनी
नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी पड़ा। अगर मां कात्यायनी की पूजा सच्चे मन से की जाए तो भक्त के सभी रोग दोष दूर होते हैं। इस दिन साधक का मन ' आज्ञा ' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में आज्ञा चक्र का विशेष महत्व है। मां कात्यायनी शत्रुहंता है इनकी पूजा करने से शत्रु पराजित होते हैं और जीवन सुखमय बनता है। मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं का विवाह होता है। भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिन्दी यानि यमुना के तट पर मां की आराधना की थी। इसलिए मां कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में जानी जाती है। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भव्य है। इनकी चार भुजाएँ हैं। मां कात्यायनी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना से मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। मां कात्यायनी का जन्म आसुरी शक्तियों का नाश करने के लिए हुआ था। इन्होंने शंभु और निशंभु नाम के राक्षसों का संहार कर संसार की रक्षा की थी।

कालरात्रि
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ' सहस्रार ' चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। उसे अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली देवी हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। मां कालरात्री हमारे जीवन में आने वाली सभी ग्रह-बाधाओं को भी दूर करती है। माता की पूजा करने वाले को अग्नि-भय, जल-भय,   जंतु-भय, शत्रु-भय,   रात्रि-भय कभी नहीं सताता इनकी कृपा से भक्त हमेशा-हमेशा के लिए भय-मुक्त हो जाता है। देवी कालरात्रि का वर्ण काजल के समान काले रंग का है जो काले अमावस की रात्रि को भी मात देता है। मां कालरात्रि के तीन बड़े-बड़े उभरे हुए नेत्र हैं जिनसे मां अपने भक्तों पर   अनुकम्पा की दृष्टि रखती हैं। देवी की चार भुजाएं हैं दायीं ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बायीं भुजा में तलवार और खड्ग मां ने धारण किया है। देवी कालरात्रि के बाल खुले हुए हैं और हवाओं में लहरा रहे हैं। देवी कालरात्रि गर्दभ पर सवार हैं। मां का वर्ण काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है। देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है इसलिए देवी को शुभंकरी भी कहा गया है। इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।

महागौरी
मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इन्होंने भगवान शिव के वरण के लिए कठोर संकल्प लिया था। इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा। इन्हें अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी, त्रैलोक्यपूज्या, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी के नाम से जाना जाता है। इनकी शक्ति अमोघ है और ये सद्य फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं। देवी महागौरी की उपासना से इस जन्म के ही नहीं पूर्व जन्म के पाप भी कट जाते है। यही नहीं भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख कभी भक्त को परेशान नहीं करते। देवी गौरी का उपासक पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। मां महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर है।  इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है।  इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत होते हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ यानी बैल है। मां गौरी के ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। जिनके स्मरण मात्र से भक्तों को अपार खुशी मिलती है, इसलिए इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं। यह धन-वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं।

सिद्धिदात्री
भक्तों नवरात्र के आखिरी दिन मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती है। देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। मां सिद्धिदात्री के स्वरुप की पूजा देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक और संसारी जन नवरात्र के नवें दिन करते हैं। मां की पूजा अर्चना से भक्तों को यश, बल और धन की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती है जो सच्चे मन से उनके लिए आराधना करते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिया, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिध्दियां होती है। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था।  इसी कारण वह संसार में अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिद्धीदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र , ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प है नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। देवी सिद्धिदात्री को मां सरस्वती का स्वरुप माना जाता है। जो श्वेत वस्त्रों में महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती है। मधु कैटभ को मारने के लिए माता सिद्धिदात्री ने महामाया फैलाई, जिससे देवी के अलग-अलग रूपों ने राक्षसों का वध किया। यह देवी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और नवरात्रों की अधिष्ठात्री हैं। इसलिए मां सिद्धिदात्री को ही जगत को संचालित करने वाली देवी कहा गया है।
नवरात्र में सावधानियां
नवरात्र का पर्व अति पावन है। इन नौ दिनों में भक्तों को मां भगवती की आराधना पूरे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए करनी चाहिए। मां की शुद्ध मन और अंतःकरण से पूजा करने से भक्तों को उनकी तपस्या का सबसे ज्यादा फल मिलता है। मां की भक्ति के वक्त निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
 माता की कृपा पाने के लिए नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। दुर्गा सप्तशती में बताए मंत्रों और श्लोकों से मां खुश होती हैं। देवी की जागरण करके पूजा की जाती है। दिन रात जागरण करने से देवी जल्द खुश होती हैं। देवी जागरण के अलावा भक्तों को इन नौ दिनों में मंगल कार्यों को करना चाहिए। मां दुर्गा की पूजा के दौरान इन बातों का बेहद ध्यान रखना चाहिए। मां की पूजा के दौरान भक्तों को कभी भी दूर्वा, तुलसी और आंवला का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मां दुर्गा की पूजा में लाल रंग के पुष्पों का बहुत महत्व है। गुलहड़ के फूल तो मां को अति प्रिय हैं। इसके अलावा बेला , कनेल, केवड़ा, चमेली, पलाश, तगर, अशोक, केसर, कदंब के पुष्पों से भी पूजा की जा सकती है। हां फूलों में मदार के फूल मां दुर्गा को कभी नहीं चढ़ाने चाहिए।
मां की पूजा करने के दौरान भक्तों को नहाने के बाद सूखे कपड़े पहनने चाहिए। गीले कपड़े पहनने या गीले और खुले बाल रखकर मां की पूजा नहीं करनी चाहिए। मां की पूजा के पहले बालों को सुखा कर और बांध कर ही देवी की आराधना करनी चाहिए। देवी की आराधना के पहले इन उपायों पर अमल करने से मां की कृपा भक्तों पर बरसने लगती है और भक्त अपनी सभी तरह की बाधाओँ से मुक्ति पाता है। उसकी हर जगह विजय होती है।




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